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कविता

फिर से पढ़ने लगा है रूस

बोरीस स्‍लूत्‍स्‍की

अनुवाद - वरयाम सिंह


फिर से पढ़ने लगा है रूस हमें
वह यों ही नहीं पलट रहा है पन्‍ने
बहरे इशारों को
फिर से समझने लगी हैं टेढ़ी नजरें।

फिर से गीत गाये जा रहे हैं लजार के
साफ और साफ सुनाई देने लगे हैं
अस्‍पताल और शिविरों के दुखभरे स्‍वर
भारी और बोझिल स्‍वर युद्ध के दिनों के।

और जैसे बादलों का धुँधला-सा हिलना
रात के आकाश में
हमारे प्रति जग रहा है आदरभाव
और कान हो रहे हैं संवेदनशील आवाजों के प्रति।

 


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